सौरमंडल में सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के बाद शनि ग्रह, सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह हमारे पृथ्वी से करीब 750 गुना बड़ा है! सनी के गोले का व्यास 116 हजार किलोमीटर है, अर्थात पृथ्वी के पास से करीब 9 गुना अधिक।
सूर्य से शनि ग्रह की औसत दूरी 143 करोड़ किलोमीटर है! यह ग्रह प्रति सेकंड 9.6 किलोमीटर की औसत गति से हमारे करीब 30 वर्षों से सूर्य का एक चक्कर लगाता है। इस तरह अन्य ग्रहों की अपेक्षा सूर्य की परिक्रमा करने में शनि को सबसे अधिक समय लगता है। अपने आकार की विशालता तथा रचना के कारण यह तेज गति से चल नहीं पाता। एक राशि में यह ढाई साल तक रहता है।
हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह शनि ग्रह हमसे बहुत दूर है। सूर्य का चक्कर लगाने में उसे हमारी धरती से 30 गुना ज्यादा समय लगता है। इस कारण हमारे यहां का 30 साल का आदमी वहां 1 साल का हो जाता है! यहां का तापमान शून्य से 150 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे है।इस कारण यहां जाना संभव नहीं माना जाता।

हमारी पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन, और लगभग 6 घंटे लगते हैं। लेकिन शनि को सूर्य का चक्कर लगाने में हमारे 30 साल के बराबर समय लग जाता है। हमारी पृथ्वी सूर्य से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है जबकि शनि 143 करोड़ों किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। फिर भी हम इस ग्रह को अपनी आंखों से देख सकते हैं! क्योंकि यह बहुत बड़ा है इतनी दूरी पर होने के कारण या ग्रह काफी ठंडा भी है।
दूरबीन से देखने पर शनि ग्रह कैसा लगता है !
शनि सौरमंडल का सबसे अधिक सुंदर ग्रह है। प्राचीन काल के ज्योतिषी अपनी कोरी आंखों से शनि ग्रह की सुंदरता को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते थे। इसलिए इसके सौंदर्य को देख नहीं पाए। शनि के मनोहर दृश्य का पता सन 1609 मे लगा। जब गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से आकाश का अवलोकन किया तभी ज्ञात हुआ कि दूरबीन से देखने पर शनि ग्रह के चारों ओर वलय अर्थात कंकड़ दिखाई देते हैं। इन वलयो को देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने शनि के गले में सुंदर हार बना दिया हो! इन्हीं ने शनि को सूर्य परिवार का सबसे सुंदर ग्रह बना दिया है ।
शनि को शनिचर क्यों कहा जाता है!
आकाश के गोल पर या ग्रह बहुत धीमी गति से चलता दिखाई देता है। इसलिए प्राचीन काल के लोगों ने इसे शनिचर नाम दिया था। शनिचर का अर्थ होता है धीमी गति से चलने वाला। शनिचर का नाम लेते ही अंधविश्वासों के रूह कांपने लगती है। फलित ज्योतिषियों की मोतियों में इस ग्रह को इतना अशुभ माना गया है कि जिस राशि में इस का निवास होता है। उसके आगे और पीछे की राशियों को भी आता है। एक बार यदि अगर किसी की राशि में पहुंच जाए तो फिर उसकी खैर नहीं होती। हमारे देश के पुराने ग्रंथों में शनि को मथिन भी कहा गया है मथिन का अर्थ मरने वाला या पीड़ा देने वाला भी होता है इस अर्थ के आधार पर शनि को कष्ट देने वाला ग्रह मान लिया गया।