संडे की छुट्टी आज तो हम हमेशा मनाते हैं। हर दिन हमें यही इंतजार रहता है कि संडे कब आए। और संडे आते ही हम खुशनुमा एहसास करते हैं। कि जिसका इंतजार कर रहे थे आखिर आ ही गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि! जिस संडे के आप हर सप्ताह खुशी मनाते हैं। यह कब शुरू हुई होगी? अगर नहीं जानते तो आइए आज हम इसके बारे में बताते हैं!
सन 1843 में अंग्रेजों के गवर्नर जनरल ने, सबसे पहले इस आदेश को पारित किया था। ब्रिटेन ने सबसे पहले स्कूली बच्चों को, रविवार की छुट्टी देने का प्रस्ताव दिया था। इसके पीछे कारण यह दिया गया कि! बच्चे घर पर रखकर कुछ क्रिएटिव काम कर सकें।
भारत में सबसे रविवार की छुट्टी घोषित कब हुई थी!
आज जो हम रविवार के दिन छुट्टी मनाते हैं। उनका पूरा श्रेय नारायण मेघाजी लोखंडे को जाता है। दरअसल जब हमारे भारत पर अंग्रेजों का शासन था। तब मजदूरों को सप्ताह के सातों दिन काम करना पड़ता था। इससे कोई भी मजदूर अपने परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाता था। और जरूरत के मुताबिक अपने शरीर को आराम भी नहीं दे पाता था।
श्री लोखंडे बेटी शासन के समय मजदूरों के नेता थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने मजदूरों की समस्या को रखा। और सप्ताह के 1 दिन छुट्टी रखने का निवेदन किया। ब्रिटिश सरकार ने नारायण मेघाजी लोखंडे के इस निवेदन को ठुकरा दिया।ब्रिटिश सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला, नारायण मेघाजी लोखंडे को पसंद नहीं आया। और उन्होंने मजदूरों के साथ मिलकर इसका खूब विरोध प्रदर्शन किया।
सन 1857 में मजदूरों के नेता मेघाजी लोखंडे ने, मजदूरों के हक में आवाज उठाई थी। उन्होंने तर्क दिया कि, सप्ताह में एक दिन ऐसा होना चाहिए। जब मजदूर आराम करने के साथ-साथ खुद को वक्त दे सके। माना जाता है कि, इसके बाद 10 जून 1890 को मेघावी का प्रयास सफल हुआ। और अंग्रेजी हुकूमत को रविवार के दिन सबके लिए छुट्टी घोषित करनी पड़ी। 7 साल की लड़ाई के बाद, अंग्रेज रविवार को सभी के लिए साप्ताहिक अवकाश बनाने पर राजी हुए।
जब मजदूरों के नेता श्री मेघाजी लोखंडे ने, मजदूरों के हक में अपनी आवाज बुलंद की, तथा उन्होंने सप्ताह में 1 दिन छुट्टी के लिए अपना संघर्ष शुरू किया। छुट्टी के लिए उन्होंने यह तर्क दिया कि हर हिंदुस्तानी, सप्ताह के 4 दिन अपने मालिक के लिए तथा अपने परिवार के लिए काम करता है। उसे एक दिन अपने देश और समाज के सेवा के लिए भी देना चाहिए। जिसे अपने देश और समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभा सके।
श्री मेघाजी लोखंडे के इस प्रयास को, सम्मान देने के लिए 2005 में उनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया गया था। इतना ही नहीं दोपहर में आधे घंटे खाना खाने के लिए भी छुट्टी उन्हीं के प्रयास से मिली थी।
और आज हम उन्हीं के चलते अपने परिवार के साथ, एक दिन आराम से बिताते हैं।तथा बच्चों से लेकर बड़ों तक छुट्टी का आनंद लेते हैं। हम सब इस दिन का इंतजार करते हैं कि, कब रविवार आए! और हम अपने परिवार के साथ खुशियां मनाएं। तथा एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा टाइम व्यतीत कर सकें।